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अजनबी / शाज़ तमकनत
Kavita Kosh से
दिन भर लोग मिरे
कपड़ों से मिलते हैं
मेरी टोपी से
हाथ मिला कर हँसते हैं
मेरे जूते पहन के मेरी
साँसों पर चलते हैं
अपने आप से कब बिछड़ा था
दिन के इस अम्बोह में मुझ को
कुछ भी याद नहीं आता
रात को अपने नंग जिस्म के
बिस्तर पर
नींद नहीं आती