भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अणूतो दिखावो / हरीश बी० शर्मा
Kavita Kosh से
परदेसी तो कोनीं
जिका अणजाणं हां
देस सूं
देस री दसा सूं
फेर भी
सिरणा चालै
सगळै सरीर में म्हारै
जद ठौड़-ठौड़ कैवतां फिरां हां
का सुणां हां -
म्हारो भारत महान !
न्यूतां देवां हां
पीळा चावळ देवण सूं पैली
चोको मंडावा हां
आंगण पुरावां हां
कै पधारो म्हारै देस।