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अति दूर आकाश में है / रवीन्द्रनाथ ठाकुर

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अति दूर आकाश में है सुकुमार पाण्डुर नीलिमा।
अरण्य उसके तले ऊपर को करके हाथ
कर रहा नीरव निवेदन है अपना श्यामल अर्ध्य।
माघ की तरुण धूप धरणी पर बिछा रहा है चारों ओर
स्वच्छ आलोक का उत्तरीय।
लिखे रखता हूं इस बात को मैं
उदासीन चित्रकार के चित्र मिटाने के पहले ही।

‘उदयन’
24 जनवरी, 1941