भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अदेह / शैलेन्द्र चौहान
Kavita Kosh से
आँखों में
धुँआ
जैसे अन्धा कुआँ
सूरदास की आँखें
बगुला की पाँखें
तुमने मुझे छुआ
अंधेरे में
अदेह !
मैं उड़ा
झपटा मछली की
आँख पर
सूखे पोखर का
रहस्य
न मछली
न मछली की आँख
बस
सूखे कठोर
मिट्टी के ढेले