अधजल गगरी छलकत जाय
अध मन बुद्धि खल वौराय,
कांचो घड़ा पानी विलगाय
मांछी के पेटें हाथी समाय।
कारो कौआ रो वोली तीत्तो
ढेला सें दै छै ढेलियाय,
सिंहों रो खाल गदहवा ओढ़ै
भेद खुलला पर डंटा खाय।
कांचो साधुवें भी रंग चढ़ाय
लाल पीरो की उजरो कार,
सकल धवल वगुला के चाल
ऐन्हों कामी धरती के भार।
जाय नरक यजमानों के साथ
दोनो के होयतै यमपुर वास,
पूरा पूरै ते पूरा के आस
अधुरा जीवन अंत निरास।