भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अनहद-नाद / सुदर्शन प्रियदर्शिनी
Kavita Kosh से
चहचहाटें...
और पैजनियों-सी
आहटें...
जहाँ कल तक
रून झुन
ठुमकती थी....।
आज सब कुछ
अकेलेपन के
सन्नाटे की
दस्तक
हो गई है...।
ऊब अनाहट-सी
आहट भी
अनहद-नाद
बन ठनकती है।