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अनुनय / रामावतार यादव 'शक्र'
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मुझ से रूठ छिपे हो जाकर दूर क्यों?
बने बदल कर जाने इतने क्रूर क्यों!
कहाँ तुम्हें मैं पाऊँ, पता न पा रहा!
जीवन उलझन में पड़कर घबरा रहा!
कुछ न सुहाता, लगा तुम्हीं में ध्यान है।
तुम से मिलने को आकुल यह प्राण है।
-1928 ई.