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अन्तर्दाह / पृष्ठ 27 / रामेश्वर नाथ मिश्र 'अनुरोध'

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उसकी कठोरता,मृदुता
वक्रता, सरलता, ऐंठन
मन-हृदय मथा करती थी
उसकी वह तिर्यक चितवन ।।१३१।।

उसका कहकहा लगाना
मेरा सकुचाकर हँसना
अधरों का चुम्बन लेना
फिर उन बाहों में कसना ।।१३२।।

उन नेत्रों के कोनों में
मन का क्षण मात्र अटकना
देखा चंचल नयनों का
विद्युत की तरह झटकना ।।१३३।।

हो रुष्ट कदाचित् क्षण भर
उन भौहों का चढ़ जाना
औ' गर्म सहज साँसों का
त्वरता से जाना-आना ।।१३४।।

उनकी वेदना-अनल में
जलता है प्राण-पतिंगा
दुख के इतने रंगों में
यों जाने किसने रंगा ? ।।१३५।।