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अन्तर्दाह / पृष्ठ 29 / रामेश्वर नाथ मिश्र 'अनुरोध'


रोका किसने प्रेमी को
जलते वियोग-ज्वाला में ?
खोते किसने रोका है
शशि को पयोदमाला में ? ।।१४१।।

 लो, तुम भी जलो इसी में
मैं तो जल रहा अकेला
आओं, हम चलें विपिन में
जग का तज निखिल झमेला ।।१४२।।

जा, जा हट जा ओ पगली!
क्यों मुझे सताने आयी?
मेरी बुझती ज्वाला को
तू और जलाने आयी  ! ।।१४३।।

अच्छा, अच्छा आ सुन ले
मूर्खे! न रूठ तू मुझ से
निस्सीम शांति सुखदायिनि
संदेश भेजता तुझ से -- ।।१४४।।

"बस्ती थी बसी उजाड़ा
निर्दयी ! बढ़ी है पीड़ा
बनकर वेदना अपरिमित
फैली अतीत की क्रीड़ा ।।१४५।।