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अन्तिम अरण्य की छाया / अमृता भारती
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याद अब केवल
दस्तक नहीं है
उसमें
हर क्षण
कुछ नया जुड़ जाता
कोई सम्वाद
या
बीती हुई बात की
कोई पीड़ा
उसमें कभी
सब-कुछ खो जाता
या कभी
सब-कुछ मिल जाता
कोई अन्धड़
कोई नदी
या किसी अज्ञात साहचर्य की
शान्त व्यापकता ।
याद अब
आहट नहीं है
वह अब अन्दर चली आई
मेरे ही अन्तिम अरण्य की
निःशब्द छाया है ।