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अन्धेरा / नीलमणि फूकन / दिनकर कुमार
Kavita Kosh से
इतने दिनों तक
लौटकर नहीं आए
श्याम वर्ण के
नाविकों की बातें
हम कर रहे थे
फैलाए गए
केले के पत्तों से
ओस की तरह
बून्द-बून्द
अन्धेरा टपक रहा था ।
मूल असमिया से अनुवाद : दिनकर कुमार