भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अन्धेरा देता है उससे भी ज़्यादा / शक्ति चट्टोपाध्याय
Kavita Kosh से
उजाला कितना दे पाता है
जो कुछ देता है .... अन्धेरा
जो कुछ देता है अन्धेरा देता है
पाप, कटे हुए सिर, नरक का धुआँ
उजाला दे सकता है यह सब?
दे सकता है क्या ...?
धूप बहुत कुछ देती है
अन्धेरा उससे भी ज़्यादा देता है
छिन्न-विच्छिन्न माँस को रख देता है ज़मीन के भीतर
इंसान की मज्जा झुलसती है
श्रद्धामय अन्धेरे के बुखार में,
धूप बहुत देती है
अन्धेरा उससे भी ज़्यादा देता है।
प्रेम थोड़ा-सा देता है
लेकिन प्रेमविहीनता देती है बहुत कुछ
विरह, अगोचर मेघ, हिंस्र-झपट्टे, जीभ और यंत्रणाएँ
अभिभूत कर देती है मज़े-मज़े में सारा दिन
धूप बहुत देती है
अन्धेरा उससे भी ज़्यादा देता है!!
मूल बँगला से अनुवाद : उत्पल बैनर्जी