भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अपणायत / कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
आ’र
बैठग्यो
दिखाणै तांई
अमणायत
मन मैलो अंधेरो
दिवलै रै तळै
पण ओ नुगरो
निज नै छळै
जे ईयां बंध्यां
बगळै
सभाव बदळै
तो क्यां ताई बाती
तिल तिल बळै !