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अपना अपना दुख / शहराम सर्मदी
Kavita Kosh से
बचपन से
अम्माँ से सुना करते थे
'पाँचों उँगलियाँ एक बराबर नहीं होतीं'
लेकिन पिछले कुछ बरसों से
अम्माँ मँझली उँगली को
खींच रही हैं
कहती हैं :
'उस को कैसे छोड़ूँ
पीछे रह जाएगी'
मँझली उँगली भी तो आख़िर जानती होगी
'पाँचों उँगलियाँ एक बराबर नहीं होतीं'
पीछे रह जाने का दुख तो मँझली उँगली सह जाएगी
लेकिन छोटी उँगली?
जिसे दबा कर
अम्माँ मँझली उँगली खींच रही हैं