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अपनी-अपनी तरह / केशव
Kavita Kosh से
उस एक पल को
हमने
अपनी सम्पूर्णतः में जना है
फिर भी हमारा चेहरा
रफ्ता-रफ्ता
सुख से सना है
तुम उछालते हो
मुझे
आसमान की ओर
मैं कहता हूँ
ज़मीन पर भी
एक घर बना है
तुम कहते हो
अपनी इच्छा से
मुक्त कर दो मुझे
दोस्त
भय इच्छा में नहीं
अपनी-अपनी सोच में तना है
मुक्त होकर भी हम
उगेंगे पेड़ों की तरह
सूंचेगी हमारे प्राणों को
वही
वही धरती
फिर भी क्या हम कहेंगे
कि हर पेड़
अपनी-अपनी तरह से घना है