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अपनी पहचान पा गयी, यारो / देवी नांगरानी
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अपनी पहचान पा गयी, यारो
मेरी हस्ती ही जब मिटी, यारो
साथ में था हुजूम सोचों का
भीड़ से मैं घिरी रही, यारो
बन गई एक ख़ुशनुमा टीका
धूल माथे से जब लगी, यारो
मैं जो डूबी कभी ख़यालों में
इक ग़ज़ल मुझसे हो गयी, यारो
बादलों में छिपा लिया चेहरा
शर्म-सी चाँद को लगी, यारो
देख कर अक्स आईना चौंका
थी ये 'देवी' कहाँ छिपी, यारो