भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अपनी बेटी के लिए-1 / प्रमोद त्रिवेदी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भींत पर अब तुम्हारे पीले हाथों की छाप है
एक सुगन्ध है
वही अब तुम्हारी उपस्थिति है
यादें फूटती हैं कितनी ही कोंपलों की तरह
और लग रहा है-
हम ठूँठ भर नहीं हैं।
कूकती है कोयल कहीं दूर
और तुम्हारे इन पीले छापों में से होकर
गुज़रते हैं हम-
वसंत की राह में...