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अपने दिन काटे ना कटते / राजपाल सिंह गुलिया
Kavita Kosh से
अपने दिन काटे ना कटते,
करें देख लो दान।
कोढ़ स्वयं का बढ़े भले ये,
बने फिरें लुकमान।
बिन दाने ये चलें भुनाने,
बिन जल जाएँ डूब।
काट रहे हैं बरगद को ये,
उपजाने को दूब।
वृद्ध मूष को सबक सिखाने,
फूँकें नया मकान।
बात करें ना सीधे मुँह से,
करनी इनकी खाक।
हाथ पसारे फिरते लेकिन,
लम्बी इनकी नाक।
कभी न चलने देते मन की,
कच्चे इनके कान।
तेग़ दिखा ये देग छीन लें,
पूछ न इनका हाल।
क्या नहाएँ औ' क्या निचोड़ें,
हैं ठनठन गोपाल।
जिसका खाते उसका गाते,
दिन भर ये यशगान।