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अपनों में नहीं रह पाने का गीत / प्रभात
Kavita Kosh से
उन्होंने मुझे इतना सताया
कि मैं उनकी दुनिया से रेंगता आया
मैंने उनके बीच लौटने की गरज से
बार-बार मुड़कर देखा
मगर उन्होंने मुझे एकबार भी नहीं बुलाया
ऐसे अलग हुआ मैं अपनों से
ऐसे हुआ मैं पराया
समुदायों की तरह टूटता बिखरता गया
मेरे सपनों का पिटारा
अकेलेपन की दुनिया में रहना ही पड़ा तो रहूँगा
मगर ऐसे नहीं जैसे बेचारा
क्योंकि मेरी समस्त यादें
सताई हुई नहीं हैं