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अप्प दीपो भव / राहुल 1 / कुमार रवींद्र

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अचरज से भरे हुए
अन्तहीन स्वप्न हुए हैं राहुल

सात बरस का बालक
सागर गम्भीर हुआ
मन जैसे नभगामी
उड़नातुर कीर हुआ

जन्मों का बिसराया
उन्हें मिला शास्ता कुल

राग-द्वेष दोनों से
पल भर में परे हुए
कंधे से उतर गये
इच्छा के सभी जुए

पार सभी घाटों के
दिखा उन्हें ऋत का पुल

आरती हुईं साँसें
फूलों-सी देह हुई
लगा उन्हें ऋतुएँ सब
जैसे हों नेह-छुई

बूँद-बूँद
नेह-नदी आँख में रही है