“तुम मर क्यों नहीं जाती?
तुम मर जाओ तो मैं चैन से रहूँ
कि मेरी नहीं हुई तो किसी की नहीं हुई
तुम उस दिन खून से लथपथ कपड़े लिए
वापस चली आयी; क्यों चली आयी?
तुम्हारी लाश आती तो ख़ुश होता
कि मुझे धोखा दिया था इसलिए जी नहीं पायी,
शर्मिंदगी से मर गयी
अब तुम्हें देखता हूँ तो खीज होती है
जी चाहता है जान से मार दूँ
पर अस्पताल में बिस्तर पर पड़े देखकर तरस आता है;
तुम अपनी मौत के साथ भी ईमानदार नहीं रही,
मेरे साथ कैसे रहती!
अब तुम मेरी नहीं ये तो लाजिम है,
पर इस बात में सुकून कैसे लाऊँ?
इससे तो अच्छा तुम्हें हमेशा के लिए खो दिया होता
तुम सलफास खाती और कभी नहीं आती”