भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अब / खुली आँखें खुले डैने / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
अब,
सच के
पास से भी पास
पहुँच तो गए आप,
पर हट गए आप
कट गए,
आप।
अब,
झूठ के
पास से भी पास
पहुँच गए आप,
और प्रिय हो गए आप,
झूठ के वफादार हो गए आप,
अब,
झूठ का डंका बजाते हैं आप
ढम-ढमाढम,
झूठ का झंडा उड़ाते हैं
सन सनासन।
रचनाकाल: २३-०२-१९९०