अब जो ख़बरें आनी हैं / सुरेश सलिल
अनिल सिन्हा<ref>साहित्य और कला के गम्भीर समीक्षक, कथाकार, 'अमृत प्रभात', 'नवभारत टाइम्स' (लखनऊ) के पूर्णकालिक पत्रकार, जनसंस्कृति मंच के संस्थापक सदस्य।</ref> की याद
अब जो ख़बरें आनी हैं
उसमें मुस्कानें नहीं होंगी
गरमाहट-भरे सीने नहीं होंगे
अब जो ख़बरें आनी हैं
उसमें मोहनसिंह प्लेस या हज़रतगंज कॉफ़ी हाउस की
मेज़ों, से प्यासों से उठती ख़ुशबूदार भाप नहीं होगी
मण्डी हाउस के पुर मज़ाक भुक्कड़
अब जो ख़बरें आनी है
उसमें निगमबोध घाट, या भैंसाकुण्ड, या
केवड़ातला, या वैसी ही किसी और मनहूस उदासी से फूटती
घुटती हुई एक 'अरे !' होगी महज़
और डबडबाई आँखें
एक दूसरे की आँखों से बचती हुई...
ख़बरें आ रही हैं
आज-कल-परसों
आ रही हैं ख़बरें
किसी असित चक्रवर्ती
किसी देबूदा
किसी मोहन थपलियाल या प्रमोद जोशी
किसी करुणानिधान या अनिल करंजई
किसी गौतमदेव या राजेश के चेहरों को
चिरायँध-भरे धुएँ से धुँधला करती...
और...और अब तुम भी
सिन्-हा<ref>उम्र का बहुवचन</ref>
अनिल ! ...हा !
हो गये सिनीने-माज़िया !
याने कि
बीते हुए बरस !
मगर....
मगर फिर भी
अल् विदा कैसे कहूँ ! -
ज़िन्दगी जाविदानी है,
ओ मेरी आत्मा के जासूस !