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अब तुम्हारा है ! / योगेन्द्र दत्त शर्मा
Kavita Kosh से
यह घर, यह देहरी, यह द्वार
अब तुम्हारा है!
यह स्वस्तिक, यह बंदनवार
अब तुम्हारा है!
यह उजली धूप
सुघर रंगों की
रांगोली
घोली तुमने आकर
अक्षत, कुंकुम
रोली
यह महका-महका-सा प्यार
अब तुम्हारा है!
भावों का यह उठता ज्वार
अब तुम्हारा है!
यह आधी रात
भरे-आंगन
महकी बेला
ओस में नहाती-सी
यह मधुवती
वेला
वेणी में गुथा हुआ हार
अब तुम्हारा है!
मौन किन्तु मुखर हर सिंगार
अब तुम्हारा है!