अरहन्तवग्गो / धम्मपद / पालि
९०.
गतद्धिनो विसोकस्स, विप्पमुत्तस्स सब्बधि।
सब्बगन्थप्पहीनस्स, परिळाहो न विज्जति॥
९१.
उय्युञ्जन्ति सतीमन्तो, न निकेते रमन्ति ते।
हंसाव पल्ललं हित्वा, ओकमोकं जहन्ति ते॥
९२.
येसं सन्निचयो नत्थि, ये परिञ्ञातभोजना।
सुञ्ञतो अनिमित्तो च, विमोक्खो येसं गोचरो।
आकासे व सकुन्तानं , गति तेसं दुरन्नया॥
९३.
यस्सासवा परिक्खीणा, आहारे च अनिस्सितो।
सुञ्ञतो अनिमित्तो च, विमोक्खो यस्स गोचरो।
आकासे व सकुन्तानं, पदं तस्स दुरन्नयं॥
९४.
यस्सिन्द्रियानि समथङ्गतानि , अस्सा यथा सारथिना सुदन्ता।
पहीनमानस्स अनासवस्स, देवापि तस्स पिहयन्ति तादिनो॥
९५.
पथविसमो नो विरुज्झति, इन्दखिलुपमो तादि सुब्बतो।
रहदोव अपेतकद्दमो, संसारा न भवन्ति तादिनो॥
९६.
सन्तं तस्स मनं होति, सन्ता वाचा च कम्म च।
सम्मदञ्ञा विमुत्तस्स, उपसन्तस्स तादिनो॥
९७.
अस्सद्धो अकतञ्ञू च, सन्धिच्छेदो च यो नरो।
हतावकासो वन्तासो, स वे उत्तमपोरिसो॥
९८.
गामे वा यदि वारञ्ञे, निन्ने वा यदि वा थले।
यत्थ अरहन्तो विहरन्ति, तं भूमिरामणेय्यकं॥
९९.
रमणीयानि अरञ्ञानि, यत्थ न रमती जनो।
वीतरागा रमिस्सन्ति, न ते कामगवेसिनो॥
अरहन्तवग्गो सत्तमो निट्ठितो।