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अर्थ बदल रहे हैं शब्द / सत्यनारायण स्नेही
Kavita Kosh से
इस तकनीकी युग में
जब फेसबुक पर मिल रहे हैं
कई तरह के मित्र
लाईक की जा रही है
उनकी तस्वीरे
दिये जा रहे हैं कमैंट
बन रही है दोस्ती की परिभाषाएं
भेजे जा रहे हैं
तत्वपरक संदेश
रची जा रही हैं नई वर्णमाला
शब्द अर्थ बदल रहे हैं।
शब्द जो देते हैं
जीवन को अर्थ
अहसास को ज़ुबान
कविता को आकार
अब मोबाईल स्क्रीन पर
दौड रहे हैं
अब जबकि
मुहावरों की जगह
आ गये हैं चुटकुले
लोकोक्ति की जगह तंत्रोक्ति
अहसास की जगह अविश्वास
कविता
अर्थों में शब्द तलाशती है
अब कोई नहीं फैंकता
शब्द आदमी की तरफ़
नहीं होता धमाका
शब्द और आदमी की
टक्कर से
खुद पहुंचते हैं शब्द
आदमी के पास
अपने अर्थ बदल कर।