भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अर्पित / रघुवीर सहाय
Kavita Kosh से
गमले में उगा नन्हीं-नन्हीं पत्तियों का
हरा सजग बिरुवा मुझे शान्ति देता है ।
तुम्हें क्या देती है तुम्हारी सेनापतियों, सैनिकों युद्धबन्दियों की पाँति ?
तुम जिस जीवन में जुते हो, अनुयायियों,
उसी में मैं भी अर्पित हूँ—
अपने कविधर्म से अपनी ही भाँति ।