भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अलअमाँ मेरे ग़मकदे की शाम / आरज़ू लखनवी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अलअमाँ मेरे ग़मकदे की शाम।
सुर्ख़ शोअ़ला सियाह हो जाये॥

पाक निकले वहाँ से कौन जहाँ ।
उज़्रख़्वाही गुनाह हो जाये॥

इन्तहाये-करम वो है कि जहाँ।
बेगुनाही गुनाह हो जाये॥