भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अलख अगोचर अजर अमर अन्तर्यामी असुरारी / लखमीचंद

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अलख अगोचर अजर अमर अन्तर्यामी असुरारी
गुण गाऊं गोपाल गरुडगामी गोविन्द गिरधारी
परम परायण पुरुषोत्तम परिपूर्ण हो पुरुष पुराण
नारायण निरलेप निरन्तर निरंकार हो निर्माण
भागवत भक्त भजैं भयभंजन भ्रमभजा भगवान
धर्म धुरंधर ध्यानी ध्याव धरती धीरज ध्यान
सन्त सुजान सदा समदर्शी सुमरैं सब संसारी

लखमीचंद की एक मशहूर रागनी प्रस्तुत है जिसमे एक ही अक्षर से शब्द और पूरी पंक्ति की छन्द रचना की गई है।