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अलमारी में किताबें / गुल मकई / हेमन्त देवलेकर

उनकी आजानुबाहु भुजाओं पर
गुदा है उनका नाम
अकेलेपन से हताश
उन्होंने अपने चेहरे
धँसा दिये हैं एक-दूसरे की पीठ में

अलमारी में एक अंधा निर्वात है
किताबों का निर्वासन
शब्दों का पतझड़ नहीं है सिर्फ़
रेगिस्तान में एकाकी जीने की
आत्मघाती भूल भी है हमारी

ध्यान से सुनो
अलमारी में किताबें
किसी आपदा राहत शिविर में
अनाथ हो चुके बच्चों की डबडबाई पुकार है

क़ैद में किताबें स्वप्न देखती हैं