प्रारब्ध के मारे हुए
हम,
ज़िन्दगी के खेल में
हारे हुए
हम,
हाय !
अपनों से सताए,
हृदय पर चोट खाए,
सिर झुकाए
मौन
जाते हैं सदा को —
कभी भी
याद मत करना,
आज के दिन भी
सुनो,
स्मृति-दीप मत रखना !
प्रारब्ध के मारे हुए
हम,
ज़िन्दगी के खेल में
हारे हुए
हम,
हाय !
अपनों से सताए,
हृदय पर चोट खाए,
सिर झुकाए
मौन
जाते हैं सदा को —
कभी भी
याद मत करना,
आज के दिन भी
सुनो,
स्मृति-दीप मत रखना !