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अलविदा / विमल राजस्थानी

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(स्वंय की मृत्यु-वेला पर अग्रिम गीत)

बीती रात, सितारे ओझल, अरूणिम अमल अँजोर
खुला द्वार पिंजरे का, पंछी चला क्षितिज की आरे

चुन-चुन तिनके नीड़ बनाया
वह भी तो पिंजरा कहलाया
बंदी-जीवन की खातिर ही-
जाने कितना स्वेद बहाया

कण-कण सींख, हृदय बिछाया, बँधा स्नेह की डोर
जीवन को निचोड़, रस लुटा-लुटा कर हुआ विभोर
खुला द्वार पिंजरे का, पंछी चला क्षितिज की ओर

नन्हा-सा परिवार बस गया
बन्धन थोड़ा और कस गया
किन्तु, स्वार्थ का सर्प अचानक-
पंछी को चुपचाप डँस गया

हँसते-हँसते झेला पंछी ने यह दंश कठोर
उपजी नहीं हृदय में पीड़ा, दृग में भरा न लोर
खुला द्वार पिंजरे का, पंछी चला क्षितिज की ओर

इस दुनिया की रीति यही है
प्यार यही है, प्रीति यही है
डुंग-डुंग बजती जीवन-वीणा-
का सकरूण संगीत यही है

घिर न बदरी, झरा न पानी, फिर भी नाचा मोर
चाँद न दीखा, पर, सागर में उठती रही हिलोर
खुला द्वारा पिंजरे का, पंछी चला क्षितिज की ओर

नहीं किसी से भी उलाहना
नहीं शेष प्रतिदान-चाहना
देना था कुछ नहीं, सभी को-
पंछी से ऋण उगाहना

स्वार्थ सर्प ने काटा तो क्या, अपनों ने तन बाँटा तो क्या
हँसा, मुड़ा, चल दिया निमोही सारी पीर बटोर
पंछी उड़ा क्षितिज की ओर।