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अलस्सुबह / गोबिन्द प्रसाद
Kavita Kosh से
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कोई ख़याल
आवारा सा
कोई तसव्वुर
धुंधला सा
आँगन में आते आते
नीम की पत्तियों सा
झर गया सुब्हय-दम
देखता हूँ :
आसमान जस का तस
है धीमा सा कोई
राग
मद्धिम सी कोई तान
टूट गया हो जैसे
कोई
ख़ुद से बे-आवाज़
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