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अली अकबर खाँ / नलिन विलोचन शर्मा
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सरोद पर तुमने था बजाया,
मैं समझा नहीं। मैंने देखा,
पीतल और लोहे से
तुमने मधु निचोड़ा :
सारा कड़वापन दूर हो गया,
मधु विदुंत होकर बँट गया।