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अवसर / राजीव रंजन प्रसाद
Kavita Kosh से
तुम्हारे पास अवसर है
खींच लो पकड़ कर पैर मेरे
मुँह के बल गिरूंगा, हद से हद और क्या होगा?
तुम मत चूको इस अवसर को
कि तुम्हें समझने का
यह अवसर नहीं जाने देना चाहता
कि तुम्हारी अप्रत्यक्ष मुस्कुराहट
और सारी शुभचिंताओं के अर्थ निकाल लेना चाहता हूँ
लेकिन धीरे-धीरे नीला समंदर सोख कर
जब आसमान काला हो जायेगा
तब क्या रोक सकोगे विप्लव को?
अवसर मत चूको
मुझे अवसर ही मत दो
या कि सावधान हो जाओ...
मैं कंकड़-कंकड़ कर
मटके से पानी पी कर दिखला दूँगा
मैं दिखला दूँगा कदम चाँद पर अपने रख कर
लाख निशाने पर होगी मेरी नन्ही सी दुनिया
आसमान की फुनगी पर
मैं भी टांगूँगा अपना घर..
२४.०२.१९९८