अहो हरि ऐसी तौ नहिं कीजै।
अपनी दिसि बिलोकि करुनानिधि हमरे दोस न लीजै॥
तुव माया मोहित कहँ जानै कैसे मति रस भीजै।
’हरीचंद’ पहिलें अपनो करि फिर काहे तजि दीजै॥
अहो हरि ऐसी तौ नहिं कीजै।
अपनी दिसि बिलोकि करुनानिधि हमरे दोस न लीजै॥
तुव माया मोहित कहँ जानै कैसे मति रस भीजै।
’हरीचंद’ पहिलें अपनो करि फिर काहे तजि दीजै॥