भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आँकुसपुर / केदारनाथ सिंह
Kavita Kosh से
आँकुसपुर
रुकी नहीं ट्रेन
हमेशा की तरह धड़धड़ाती हुई आई
और चली गई छोड़कर आँकुसपुर
सिर्फ़ दसबजिया यहाँ रुकती है
कहा एक यात्री ने
दूसरे यात्री से ।
क्यों ?
आख़िर क्यों ?
फिर पृथ्वी पर क्यों है आँकुसपुर-
जब रहा नहीं गया
तो तार पर बैठी एक चिड़िया ने पूछा
दूसरी चिड़िया से