आँखें भर-भर आयेंगी ही / विमल राजस्थानी
कोमल मन को ठेस लगे तो आँखे भर-भर आयेंगी ही
नयनों के नभ में करूणा की श्वेत बदरिया छायेगी ही
रोने से दुख हल्का होगा
इसीलिए जल छलका होगा
नदियाँ उफनीं, झरने उछले
दुखी हृदय भूतल का होगा
जब धरती की छाती दरके
दायीं आँख फसल की फरके
रह न सकेगी भीतर घर के
उमड़ेगी नयना भर-भर के
झम-झम करती आयेंगी ही
घन-परियाँ मँडरायेंगी ही
नयन-नीर बरसायेंगी ही
कोमल मन को ठेस लगे तो आँखें भर-भर आयेंगी ही
नयनों के नभ में करूणा की श्वेत बदरिया छायेगी ही
जीवन ने न रूदन चाहा है
मन ने कब क्रन्दन चाहा है
चाहा है केवल सतरंगी-
पंखों का स्वन चाहा है
टूटी चाह रूलायेगी ही
नूपुर-अश्रु बजायेगी ही
स्मृति मधुर सतायेगी ही
कोमल मन को ठेस लगे तो आँखे भर-भर आयेंगी ही
नयनों के नभ में करूणा की श्वेत बदरिया छायेगी ही
नूपुर-अश्रु बजायेगी ही।