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आँखों से जब झरता जल / अनिता ललित
Kavita Kosh से
आँखों से बहता जब जल
भीगें आँखें, सुलगे मन ,
जैसे सुलगे गीली लकड़ी...
होती धुआँ-धुआँ
दिन रैन!
किस क़दर जलता है जल...
यह निर्झर का जल ही जाने...
झरता है जब झर झर अंतस्
जलता जाता है ये जीवन...!
नदिया के दो छोर बने हम
संग चलें...पर मिल न पाएँ।
हम दोनों के बीच खड़ा पुल
आधा जलता... आधा जल में
न सजल को आँच मिले
न जलते की ही प्यास बुझे!
क्यों भीगे हम झरते जल में
जला- जलाकर रिश्ता अपना
याद रहे क्यों तीर नदी के.
याद न क्यों गहराई उसकी...?
दूर चाँद नदिया से जितना
उतना उसके भीतर पैठा
दो छोरों का रिश्ता गहरा
गहरे जल में जाकर ठहरा
जल में जलते चाँद- सा बैठा...!!!