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आंख कैवै तो ई / सांवर दइया
Kavita Kosh से
बै सबद कठै
जिका कर सकै
बखाण
सौ टका साचो बखाण
म्हारी आंख्यां आगै
पसरियोड़ी है
कुदरत रो मदछकियो जोबन
अणहद रूप
इणी मद छकियै जोबन
अर अणहद रूप रो
एक टुकड़ो
तूं
सावल देखयो-परख्यो
केई-केई दफै
चढ़ियो
उतरियो
डील रा डूंगर
डील री ढळांद
गुजरियो गरम गुफावां सूं
तावड़ै में बैठ्यो
थारै केसां री ठण्डी छींया
सीयाळै में सोध्यो
बोबा-गढ़ में निवास
पण आज
लाख जतन करियां ई
सांमै कोनी आवै
सागी बात
आं होठां नै कांई ठा
देखण आळी तो आंख ही
तूं कांईं है
कैड़ी है
अबै आ आंख कैवै तो ई
ठा पड़ै !