भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आइये, पधारिये / दरवेश भारती
Kavita Kosh से
आइये, पधारिये
बज़्मे-दिल सँवारिये
वक़्त बेलगाम है
हौसला न हारिये
माले-मुफ़्त है वतन
लूटिये, डकारिये
आप तो हैं हुक्मरान
शेखियाँ बघारिये
हो सके तो डूबती
क़ौम को उबारिये
सो रही हों क़िस्मतें
ज़ोर से पुकारिये
उम्र अधेड़ है ज़रूर
मन न अपना मारिये