आई बरसाने ते बुलाय वृषभानु सुता ,
निरखि प्रभान प्रभा भानु की अथै गई ।
चक चकवान के चकाये चक चोटन सोँ,
चौँकत चकोर चकचौँधा सी चकै गई ।
देव नन्दनन्दन के नैनन अनन्दमयी ,
नन्दजू के मँदिरन चँदमयी छै गई ।
कँजन कलिनमयी कुँजन नलिनमयी ,
गोकुल की गलिन अलिनमयी कै गई ।
देव का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।