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आओ तुमको गीत सुनाएँ / प्रदीप शुक्ल
Kavita Kosh से
उठो अकविता के मरुथल से
तुमको शीतल छाँव दिखाएँ
आओ तुमको गीत सुनाएँ
शब्दों की
खुरदुरी सतह पर
चलते चलते थक जाओगे
मृग मरीचिका के पीछे तुम
कब तक मन को दौड़ाओगे
लय में बहते निर्झर जल से
आओ मन की प्यास बुझाएँ
आओ तुमको गीत सुनाएँ
पछुआ की
बेरहम हवाएँ
सुखा रहीं मन का गीलापन
पुरवा के आँचल में खोजें
आओ थोड़ा सा अपनापन
सुधियों के
मृगछौने लेकर
बैठ छाँव में हम दुलराएँ
आओ तुमको गीत सुनाएँ