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आख़िरी हिलोर तक / अभिज्ञात
Kavita Kosh से
छलक आया प्यार मेरा
अब दृगों के कोर तक
आ सको यदि
आ भी जाओे, कौन जाने
सांस की लडि़यां बिखर जाएं
सुहानी भोर तक!!
भाल पर तेरे, मेरे
चुम्बन का कुमकुम तो लगे
एक वह अभिसार बेला
लाख पूनम को ठगे
कान में तुम कुछ मेरे
ऐसा कहो
ठहर जाए इस हृदय की
धड़कनों का शोर तक!
डूबना यदि नियति मेरी
तो शिकायत भी नहीं
और की बाहें गहूँ
इतनी जरूरत भी नहीं
पार उतरूंगा तुम्ही से
आ मिलो,
मुझे राह तकनी है तुम्हारी
आखिरी हिलोर तक!