सूखी नदी ने
न अपना दिल खोला
न उदासी का बताया आख्यान
बस पत्थरों से, बोलती रही
बस अपना हाड़मांस देखती रही!
मैंने कहा, ‘नदी! मेरा दुःख तुमसे छोटा है।’
सूखी नदी ने
न अपना दिल खोला
न उदासी का बताया आख्यान
बस पत्थरों से, बोलती रही
बस अपना हाड़मांस देखती रही!
मैंने कहा, ‘नदी! मेरा दुःख तुमसे छोटा है।’