भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आग (तीन) / विष्णु नागर
Kavita Kosh से
जिस आग को बुझाता हूँ
उसी आग को बुझाता हूँ
आग से तो मेरा ऐसा रिश्ता है
आग से तो
मैंने रोटी सेंक ली
आग से तो
मैंने कपड़े बचा लिए
आग से तो
मैंने बच्चे को डरा दिया
आग से तो मेरा ऐसा ही रिश्ता है
आग
कहीं लगी तो नहीं?