आज़ादी का उत्सव / संतोष श्रीवास्तव
आजादी!
कितना मीठा मधुर शब्द
लेकिन उतना ही लोमहर्षक
जब भारत का दो हिस्से
कटकर हो गये थे पाकिस्तान
एक फितूरी जिद में
कश्मीर की खूबसूरत घाटियाँ
स्वात, चित्राल, नीलम
सेवों के उद्यानों वाला मुजफ्फराबाद
चटगांव, ढाका
देवी ढाकेश्वरी का मंदिर
यहाँ तक कि पूर्वी गंगा माँ सहित
रेत से फिसल गये थे
भारत के नक्शे से
लाखों घर जले थे
लाखों सिर कटे थे
मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे
प्रार्थना स्थल नहीं
कत्ल गाह बन गए थे
हजारों नौनिहालों को
बंदूक की नोक पर उछाला गया था
औरत की अस्मत
सड़कों का तमाशा बन गई थी
दंगाइयों, बलात्कारियों की निशानियाँ
कोख में ढोते जिस्म
शरणार्थी कैंपों में ठूंस दिए गए थे
वह लम्हा आज भी सुलग रहा है
पूछ रहा है देश से
किस बात का उत्सव मना रहे हो
आजादी का या तबाही का?