आज़ादी के चौदह वर्ष / हरिवंशराय बच्चन
देश के बेपड़े,भोले,दीन लोगों !
आज चौदह साल से आज़ाद हो तुम.
कुछ समय की माप का आभास तुमको ?
नहीं; तो तुम इस तरह समझो
कि जिस दिन तुम हुए स्वाधीन उस दिन
राम यदि मुनि-वेष कर,शर-चाप धर
वन गए होते,
साथ श्री ,वैभव,विजय,ध्रुव नीति लेकर
आज उनके लौटने का दिवस होता !
मर चुके होते विराध,कबंध,
खरदूषण,त्रिशिर,मारीच खल,
दुर्बन्धु बानर बालि,
और सवंश दानवराज रावण;
मिट चुकी होती निशानी निशिचरों की,
कट चुका होता निराशा का अँधेरा,
छट चुका होता अनिश्चय का कुहासा,
धुल चुका होता धरा का पाप संकुल,
मुक्त हो चुकता समय
भय की,अनय की श्रृंखला से,
राम-राज्य प्रभात होता !
पर पिता-आदेश की अवहेलना कर
(या भरत की प्रार्थना सुन)
राम यदि गद्दी संभाल अवधपुरी में बैठ जाते,
राम ही थे,
अवध को वे व्यवस्थित,सज्जित,समृद्ध अवश्य करते,
किंतु सारे देश का क्या हाल होता.
वह विराध विरोध के विष दंत बोता,
दैत्य जिनसे फूट लोगों को लड़ाकर,
शक्ति उनकी क्षीण करते.
वह कबंध कि आँख जिसकी पेट पर है,
देश का जन-धन हड़पकर नित्य बढता,
बालि भ्रष्टाचारियों का प्रमुख बनता,
और वह रावण कि जिसके पाप की मिति नहीं
अपने अनुचरों के,वंशजों के सँग
खुल कर खेलता,भोले-भलों का रक्त पीता,
अस्थियाँ उनकी पड़ी चीत्कारतीं
कोई न लेकिन कान धरता .
देश के अनपढ़,गँवार,गरीब लोगों !
आज चौदह साल से आज़ाद हो तुम
देश के चौदह बरस कम नहीं होते;
और इतना सोचने की तो तुम्हें स्वाधीनता है ही
कि अपने राम ने उस दिन किया क्या ?
देश में चारों तरफ़ देखी,बताओ .