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आजादी / सरोज कुमार
Kavita Kosh से
आजादी से सुखद
कोई मजा नहीं है,
आजादी से दुखद
कोई सजा नहीं है!
जहाँ मै ही निमित्त, मैं ही कर्म
मैं ही फल हूँ!
जहाँ मैं हंटर, मैं ही पीठ
मैं ही मरहम हूँ।
जहाँ कोई राजा-
राजा!
जहाँ कोई प्रजा-
प्रजा नहीं है!
जहाँ मैं ही स्वामी, मैं ही चाकर,
मैं ही दाता, मैं ही फरयाद हूँ!
जहाँ मैं ही कवि, मैं ही श्रोता
मैं ही हुटिंग, मै ही दाद हूँ !
मैं ही रंग, मैं ही रूप
मैं ही जिसका झंझावात
ऐसी तो दुनिया में
कोई अन्य ध्वजा नहीं है!
आजादी से सुखद
कोई मजा नहीं है,
आजादी से दुखद
कोई सजा नहीं है।