Last modified on 28 सितम्बर 2007, at 19:33

आजु गृह नंद महर कैं बधाइ / सूरदास

 राग बिलावल

आजु गृह नंद महर कैं बधाइ ।
प्रात समय मोहन मुख निरखत, कोटि चंद-छबि पाइ ॥
मिलि ब्रज-नागरि मंगल गावतिं, नंद-भवन मैं आइ ।
देतिं असीस, जियौ जसुदा-सुत कोटिनि बरष कन्हाइ ॥
अति आनंद बढ्यौ गोकुल मैं, उपमा कही न जाइ ।
सूरदास धनि नँद की घरनी, देखत नैन सिराइ ॥

आज व्रजराज श्रीनन्द जी के यहाँ बधाई बज रही है । करोड़ों चन्द्रमा के समान सुशोभित मोहन का मुख प्रातःकाल ही उन्होंने देखा है । व्रज-नागरिकाएँ एकत्र होकर नन्दभवन में आकर मंगलगान कर रही हैं । वे आशीर्वाद देती हैं--`यशोदा रानी का पुत्र कन्हाई करोड़ों वर्ष जीवे ।' गोकुल में अत्यन्त आनन्द उमड़ा है, उसकी उपमा वर्णन नहीं किया जा सकता । सूरदास जी कहते हैं कि नन्दपत्नी धन्य हैं, उनके दर्शन करके ही नेत्र शीतल हो जाते हैं ।